सावन का पहला सोमवार : शिव मंदिरों में भक्तों का लगा तांता, हर-हर महादेव के नारों से गुंजा मंदिर

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रायपुर| आज सावन का पहला सोमवार है। छत्तीसगढ़ के मंदिर करीब दो साल बाद फिर से बोल बम के जयकारों से गूंजने लगे हैं। रायपुर में महादेव घाट स्थित हटकेश्वर नाथ से लेकर कवर्धा के भोरमदेव, बिलासपुर के रतनपुर व मल्हार से लेकर बस्तर के गुमरगुंडा शिवालय तक हर-हर महादेव के स्वर सुनाई देते रहे। कोरोना संक्रमण के चलते करीब 2 साल बाद फिर से शिव भक्तों का जयकारा सुनाई दिया। कवर्धा में जहां पैदल यात्रा निकाली गई, वहीं धमतरी में भी कांवड़ यात्रा निकली।

 

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गरियाबंद के राजिम स्थित कुलेश्वर महादेव। इस मंदिर को अष्‍टकोणीय बनाया गया है। मंदिर की ऊंचाई 17 फीट है। मंदिर की वास्‍तुकला में एक मंडप शामिल है जो 26 फीट लंबा है। मंदिर में बने स्‍तंभों में कई देवी और देवताओं की मूर्ति बनी हुई है। सावन के पहले सोमवार को मंदिर में स्थापित शिवलिंग का पुष्पों से श्रृंगार किया गया। बिलासपुर से करीब 32 किमी दूरी पर स्थित है नगर पंचायत मल्हार यह एक ऐतिहासिक स्थल है। यहीं प्रसिद्ध पातालेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर का निर्माण कल्चुरी काल में 10 वीं से 13वीं सदी में कराया गया था। पातालेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ में विराजमान हैं। मंदिर खास बात यह है कि 108 कोण बने हुए है। पातालेश्वर महादेव को केदारेश्वर भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर की जलहरी में चढ़ाया जाने वाला जल पाताल लोक तक पहुंचता है। मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पूजन-अर्चन के लिए पहुंचे।भिलाई के बैकुंठ धाम स्थित शिव मंदिर में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया। सावन सोमवार को हर साल हजारों भक्त पहुंचते हैं। ये मंदिर भिलाई छावनी क्षेत्र में है और यह सबसे बड़ा शिव मंदिर है। यहां करीब 30 फीट ऊंची शिव प्रतिमा और करीब 10 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है।बिलासपुर से ही करीब 25 किमी की दूरी पर रतनपुर रामटेकरी के नीचे बूढ़ा महादेव (वृद्धेश्वर महादेव) का मंदिर है। प्राचीनकाल से बूढ़ा महादेव आस्था का केंद्र बना हुआ है। बूढ़ा महादेव के रूप में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू हैं। यहां सावन में विशेष रूप से पूजन होता है। रायपुर के लखना स्थित सोमनाथ मंदिर  शिवनाथ नदी और खारुन नदी के संगम पर तीन फीट का शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग कई सालों पुराना है और खुदाई में यहां से निकला है। श्रावण सोमवार के महीने में यहां पर सैकड़ों भक्त पहुंचते हैं।

 

 

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धमतरी के रिसाइपारा स्थित नागेश्वर महादेव मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। रुद्रेश्वर घाट रूद्री से कांवर में जल लेकर कांवड़ियों का जत्था शहर पहुंचा और शिवलिंग का अभिषेक किया। सावन के पहले सोमवार पर कवर्धा के भोरमदेव स्थित शिव मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। सुबह से ही शुरू हुआ पूजन शाम तक जारी रहा। कवर्धा से 18 किमी दूर करीब एक हजार साल पुराना यह मंदिर है। मंदिर 7 से 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और यह नागर शैली में बना है।रायपुर में खारुन नदी के तट पर स्थित हटकेश्वर नाथ मंदिर में सुबह से लगातार पूजा-अर्चना का दौर जारी है। पिछले दो साल से प्रतिबंधों के चलते इस बार श्रद्धालु बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचे हैं। मंदिर में शिवलिंग स्थापना को लेकर मान्यता है कि खारुन नदी को द्वापर युग में द्वारकी के नाम से जाना जाता था। महाकौशल प्रदेश के राजा ब्रह्मदेव जब घने जंगल में शिकार करने आए थे, तब नदी में बहता शिवलिंग दिखा। उन्होंने ही इसकी स्थापना की। बताया गया है कि 1400 ईसवी में कल्चुरी शासक भोरमदेव के पुत्र राजा रामचंद्र ने इसका निर्माण करवाया है।कोरोना के चलते करीब दो सालों से स्थगित पद यात्रा एक बार फिर सोमवार को निकली और भोरमदेव मंदिर पहुंची। भोरमदेव पदयात्रा की शुरुआत साल 2008 में की गई थी। पहली यात्रा को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के पिता और भोरमदेव तीर्थकारिणी प्रबंध समिति के तात्कालीन अध्यक्ष स्व. विघ्नहरण सिंह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। उस समय पदयात्रा में खुद तात्कालीन कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक सहित जिले के आला अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधि समाजसेवी संगठनों के साथ बड़ी संख्या नगरवासी शामिल हुए थे।

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