जहाँ पहले सन्नाटा था, अब वहाँ बच्चों की हँसी गूंजती है… : युक्तियुक्तकरण से गांवों में लौटी उम्मीद की रौशनी स्कूलों में शिक्षा क्रांति की दस्तक

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रायपुर : देश का हरा-भरा, वन आच्छादित राज्य छत्तीसगढ़ आज शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति की ओर बढ़ रहा है। जहां कभी बच्चों के हाथ में किताबें नहीं थीं, आज वहाँ बच्चों की आँखों में सपने हैं  यह बदलाव अचानक नहीं आया, यह कहानी है युक्तियुक्तकरण की। कई गांव ऐसे थे जहाँ स्कूल तो थे, लेकिन शिक्षक नहीं। कुछ स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक था, तो कहीं वर्षों से कोई नहीं आया। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। माता-पिता को मजबूरी में बच्चों को दूर भेजना पड़ता या वे पढ़ाई ही छोड़ देते।

शिक्षा सिर्फ एक इमारत नहीं, एक भरोसा होती है

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक युक्तियुक्तकरण नीति लागू की गई। जिसमें शिक्षकों का पुनर्वितरण कर उन्हें वहाँ भेजा गया जहाँ ज़रूरत सबसे ज्यादा थी। जहां कल तक स्कूलों में ताले लटकते थे, वहाँ आज ज्ञान की घंटी बज रही है।

शिवतराई, खरगा, खपराखोल अब बदलते गांवों की पहचान हैं

शिवतराई – यह स्कूल एक शिक्षक के सहारे जैसे-तैसे चल रहा था। अब युक्तियुक्तकरण के तहत दो शिक्षक और जुड़ गए। स्कूल फिर से गुलजार हो गया। बच्चों के चेहरे पर मुस्कान और पालकों में भरोसा लौट आया।

खरगा (कोटा ब्लॉक) – यहाँ पढ़ाई में आगे रहने वाली छात्रा पूनम धृतलहरे जैसी कई प्रतिभाएं एकल शिक्षक की वजह से हताश हो चुकी थीं। अब अतिरिक्त शिक्षक मिलने से पढ़ाई को दिशा मिल गई है।

खपराखोल (दूरस्थ गांव) – सालों से शिक्षक नहीं थे, पढ़ाई जैसे-तैसे चल रही थी। अब नियमित शिक्षक आ गए हैं। बच्चे पहले से ज़्यादा उत्साह और अनुशासन के साथ स्कूल आ रहे हैं। युक्तियुक्तकरण में ज़रूरत के हिसाब से शिक्षक भेजे गए। जहां ज़्यादा शिक्षक थे, वहाँ से स्थानांतरण कर संतुलन बनाया गया। परिणामस्वरूप सैकड़ों स्कूल शिक्षक विहीन होने से बचे।

शिक्षा से बदलता है समाज और छत्तीसगढ़ इसका साक्ष्य है

यह बदलाव केवल नीति की सफलता नहीं, बल्कि गांवों की बदलती सोच, माता-पिता की उम्मीदों और बच्चों के भविष्य की गवाही है। शिवतराई, खरगा और खपराखोल जैसे गांव अब आंकड़ों की फेहरिस्त नहीं, सफलता की कहानियां हैं।

मुस्कुराते बच्चे, उज्ज्वल छत्तीसगढ़

आज जब शिवतराई, खपराखोल और खरगा के किसी कोने में बैठा बच्चा आत्मविश्वास से कहता है, “मैं भी बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर या टीचर बनूंगा”। बच्चों के अभिभावक भी अब बच्चों की शिक्षा के स्तर से खुशी जाहिर कर रहे है, यही शिक्षा की असली क्रांति है।

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