प्रकृति प्रेम एवं मित्रता का पर्व है भोजली

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रायपुर| भोजली यानी ‘भो-जली‘ अर्थात भूमि में जल हो। हमारे छत्तीसगढ़ की महिलाएं गीतों के माध्यम से यही कामना करती हैं एवं भोजली देवी अर्थात प्रकृति की पूजा करती हैं। भोजली का पर्व नौ दिनों का होता है, जो सावन मास की सप्तमी से प्रारंभ होकर सावन मास की पूर्णिमा तक चलता है एवं भादो मास की पहली तिथि को विसर्जित किया जाता है। इस त्योहार की खास बात यह है की विश्व में यह त्योहार अपने अंतिम दिन यानी विसर्जन के दिन के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन बड़े हर्षाेल्लास के साथ भोजली विसर्जन किया जाता है। आमतौर पर पौधे का रंग हरा होता है पर भोजली का रंग सुनहरा होता है। कुछ भोजली में छींटे दिखते है जिन्हे लोग चंदन कहते है। भोजली गेंहू से निकला पौधा होता है, जिसे भोजली देवी का रूप मानते है।

 

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भोजली का पर्व छत्तीसगढ़ में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। भोजली बोने के लिए सबसे पहले कुम्हार के घर से मिट्टी लाई जाती है जो कि कुम्हार द्वारा पकाए जाने वाले मटके व दीयो से बची राख होती है, इसे आम भाषा में ‘खाद-मिट्टी‘ भी कहते हैं। इसके पश्चात टुकनी (टोकरी) और चुरकी लाई जाती है, जिसमे कुम्हार के घर से लाई गई खाद मिट्टी डाली जाती है। इसके बाद गांव के बैगा के घर से गेंहू लाया जाता है। इस गेंहू को सुबह भिगोकर शाम को टुकनी और चुरकी जिसमे मिट्टी डाली जाती है, उसमें डाला जाता है और ऊपर से फिर मिट्टी डाली जाती है। आस्था और सेवा से इन टोकरियों में पांच दिन में ही गेंहू के पौधे (भोजली) निकल जाते है। बैगा और गांव वाले भोजली के रूप में देवी देवताओं के पूजा व सेवा करते है और देवी-देवताओं से घर परिवार एवं गांव के सुरक्षा की कामना करते हैं। नौ दिन के सेवा के पश्चात भोजली देवी के विसर्जन के दिन पूरा गांव भोजली गीत (जैसे देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा हमरो भोजली दाई के भीजे आठों अंगा……) गाते हुए भोजली को पकड़कर नाचते हुए विसर्जन करने ले जाते है।

 

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भोजली का विसर्जन नदी या गांव के तालाब में किया जाता है और विसर्जन के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है, फिर सभी गांव वाले अपने अपने घरों को चले जाते है। विसर्जन के समय कुछ भोजली अलग रख लिया जाता है, जिसे अपने मित्र के साथ आदान प्रदान (कान में लगा कर) करके यहां के लोग अपनी मित्रता को और मज़बूत करते है और जीवनभर निभाते हैं। भोजली पर्व छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार है। इसमें कुम्हार से लेकर बैगा और सम्पूर्ण गांव की भागीदारी होती है। यह पर्व हमारे छत्तीसगढ़ की संस्कृति के साथ-साथ यहां के लोगो के रिश्तों को भी मजबूत बनाती है। भोजली बदने के साथ ही दो लोगों की मित्रता बड़ी प्रगाढ़ हो जाती है, जिसमें मित्र एक-दूसरे का आजीवन साथ देने का वचन देते है। भोजली बदने के बाद मित्र परिवार के सदस्य की भांति हो जाता है, जिसे पारिवारिक आयोजनों, सुख-दुख, में सबसे पहले पूछा जाता है। एक मित्र भी अपने मित्र के अभाव में उसके परिवार को अपने परिवार की तरह ही मानता है यह परंपरा पीढ़ियों में भी निभाई जाती है। आप भोजली को हमारे छत्तीसगढ़ के ‘फ्रेंडशिप डे‘ के रूप में भी मान सकते हैं। इस प्रकार यह पर्व छत्तीसगढ़ के प्रकृति प्रेम एवं एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सम्मान को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ के लोगों के मित्रता व रिश्तों की मजबूती भी बतलाता है। शायद इन्ही त्योहारों कि सीख के कारण यहां रहने वाले लोग एक-दूसरे का परस्पर सहयोग करते है और देशभर में ‘सबले बढ़िया‘ बन जाते है।

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