ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर 22 मार्च को भगवान महाकाल को नीम मिश्रित जल से स्नान कराया जाएगा। पंचांग का पूजन होगा तथा मंदिर के शिखर पर नया ध्वज लगाया जाएगा।
मान्यता के अनुसार पृथ्वी के नाभी केंद्र पर स्थित काल के अधिपति भगवान महाकाल के आंगन से नवसंवत्सर की शुरुआत होती है। तड़के 4 बजे भस्म आरती में पुजारी भगवान महाकाल को नीम मिश्रित जल से स्नान कराया जाता है। इस दिन से हिन्दू वर्ष का आरंभ होता है, इसलिए नए पंचांग का पूजन भी किया जाता है। मंदिर के शिखर पर नया ध्वज चढ़ाया जाता है।
पं. महेश पुजारी ने बताया चैत्र मास ऋतु परिवर्तन का महीना है। इस माह में ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। इसके प्रभाव से वात,कफ,पित्त की वृद्धि होती है। इससे अनेक रोग जन्म लेते हैं। वात, कफ, पित्त के निदान के लिए नीम के सेवन का महत्व है। आयुर्वेद में भी नीम मिश्री के सेवन को अमृत तुल्य बताया गया है। नीम के जल से स्नान करने से त्वचा के रोग समाप्त होते हैं।
ज्योतिर्लिंग की परंपरा में अखिल विश्व को समय का बोध, तिथि के महत्व तथा आयुर्वेद के माध्यम से निरोगी रहने का संदेश दिया जाता है। इसलिए इस दिन भगवान महाकाल को नीम युक्त जल से स्नान कराते हैं। सनातन धर्म की ध्वजा दिगदिगंतर तक लहराती रहे इसका उदघोष भी शिखर पर नया ध्वज लगाकर की जाती है।
भगवान श्री महाकाल को चांदी का छत्र भेंट
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में गुरुवार को कुशलगढ़ राजस्थान से आए भक्त कुशपासिंह राठौर ने भगवान महाकालके श्रृंगार हेतु एक किलो 165 ग्राम चांदी का सुंदर नक्काशीदार छत्र भेंट किया। सहायक प्रशासनिक अधिकारी आरके तिवारी ने बताया मंदिर समिति की ओर से दानदाता का सम्मान किया गया।