बिलासपुर। इस वर्ष खरीदे गए धान उठाव नहीं होने से खुले में पड़ा धान सूख रहा है साथ ही वजन और गुणवत्ता भी घट रही है। धान की बर्बादी को देखते हुए समिति के प्रबंधकों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाई थीं। जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि धान का समय पर उठाव करना राज्य सरकार की जिम्मेदार है। समितियों को आदेश की कापी के साथ केन्द्र और राज्य सरकारों को अभ्यावेदन देने को कहा। साथ ही संबंधित अधिकारियों को 90 दिनों के भीतर विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
प्रदेश की 20 से अधिक सहकारी समितियों ने हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं लगाई थीं। याचिकाओं में बताया कि, उन्होंने सरकार की नीतियों के अनुसार धान खरीदा था। पहले उठाव की अंतिम तारीख 31 जनवरी 2025 तय की गई थी। बाद में 19 और फिर 28 फरवरी 2025 तक बढ़ाया गया। इसके बावजूद धान का पूरा उठाव नहीं हुआ। कई केन्द्रों में धान खुले में पड़ा है। समितियों के पास सुरक्षित भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण धान को बारिश, गर्मी, कीट और पक्षियों से नुकसान हो रहा है। साथ ही धान की गुणवत्ता में भी लगातार गिरावट हो रहा है।
केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर इस पर नीति बनाएं:
समितियों ने हाईकोर्ट से सरकार को बाकी धान उठाने, उठाव में देरी और पर्यावरणीय कारणों से हुई मात्रा की कमी का समायोजन करने के निर्देश देने की मांग की गई। उन्होंने कहा कि पहले की नीतियों में ऐसी स्थिति में 1-2 प्रतिशत ड्राइज भत्ता दिया जाता था, लेकिन इस बार कोई स्पष्ट नीति नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि बारिश का मौसम नजदीक है। ऐसे में नुकसान बढ़ सकता है। केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर इस पर नीति बनाएं।