छंट रहा 4 दशक का अंधेरा : नक्सल दंश से उबर रहे बैलाडीला की तराइयों में बसे मुतवेंदी गांव तक पहुंचने को आतुर है ‘विकास

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बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में नक्सलवाद के चलते बीते चार दशक में हालात कितने बद्तर थे इसका ताजा उदाहरण है धुर नक्सल प्रभावित गांव मुतवेंदी। राजधानी रायपुर से 432 किमी दूर लौह अयस्क के लिए मशहूर बैलाडीला पहाड़ी श्रृंखला की तराई में बसा बीजापुर जिले का एक छोटा सा गांव मुतवेंदी, जो राजस्व के नक्शे में नजर भी नहीं आता। इस गांव में बांस की बाड़ी में संचालित एक प्राइमरी स्कूल है जिसकी कहानी बयां करती है कि, माओवाद के चलते यहां पर विकास की खाई कितनी गहरी हो चुकी है।

दरअसल, मुतवेंदी गांव में न सिर्फ स्कूल खोलने बल्कि स्कूल के लिए पक्की इमारत की नींव रखने के लिए भी चार दशक से ज्यादा का समय लग गया। बताया जाता है कि, मुतवेंदी के लिए स्कूल दो दशक पहले ही स्वीकृत था, लेकिन जब तक स्कूल शुरू हो पाता तब तक जुड़ूम का दौर शुरू हो गया। हिंसा के उस दौर में स्कूल शुरु नहीं हो पाया था। अब सरकार नक्सलियों के खिलाफ सरकार फ्रंट पर है। नियद नेल्लार के तहत शिक्षा विभाग इस सत्र में यहां पर स्कूल खोलने में कामयाब रहा। अब तो स्कूल के लिए पक्की इमारती नींव रखने की भी तैयारी है।

दुधमुही बच्ची को गोली लगने पर चर्चा में आया था मुतवेंदी गांव 

बीजापुर जिले का मुतवेंदी गांव 1 जनवरी साल 2024 को तब सुर्खियों में आया था जब सुरक्षाबलों के जवान इस इलाके में नक्सलियों के तिलस्म को तोड़ने के लिए कांवड़गांव से पीड़िया की तरफ बढ़े थे। सड़क निर्माण के दौरान पुलिस और नक्सलियों के बीच हुए मुठभेड़ में दुधमुही बच्ची की जान गई थी। दरअसल, आंगन में चारपाई पर मां की गोद में सोई छह माह की मासूम मंगली के नाजुक शरीर को एक गोली भेदकर कर निकल गई। वह मासूम दुनिया देखने से पहले ही दुनिया को अलविदा कह गई थी।

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