ग्वालियर डीआरडीओ ने कर दिया कमाल!,रसायनिक युध्द से बचाने के लिए बनाई नई डिवाइस,बढ़ा एमपी का मान

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ग्वालियर : मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित देश के रक्षा संस्थान डीआरडीओ की डीआरडीई लैब ने रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा कदम बढ़ाया है। आगामी समय में न्यूक्लियर, जैविक और रासायनिक युद्ध का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस तरह के युद्ध का खतरा होने पर अलर्ट करने और अधिक से अधिक बचाव के लिए ग्वालियर के साइंटिस्ट डॉ. सुशील बाथम की टीम ने ‘ACADA’ (ऑटोमेटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म) विकसित किया है। ये उपरकण आयन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री के सिद्धांत पर काम करता है। यह डिवाइस ‘ACADA’ हवा में घुले केमिकल के बारीक कणों को भी कैच कर ऑडियो और वीडियो रूप में अलर्ट जारी करेगा। भारत इस डिवाइस को स्वदेशी तकनीक से विकसित करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।

आपको बता दें हाल ही में भारतीय सेना और वायु सेना ने ‘ACADA’ की 223 यूनिट की खरीद के लिए ऑर्डर दिया है। यह डील लगभग 80 करोड़ रुपये में हुई है। आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित नीति की दिशा में डीआरडीई, ग्वालियर का बड़ा योगदान सामने आया है। DRDE के साइंटिस्ट सुशील बाथम द्वारा विकसित स्वचालित रासायनिक युद्ध डिटेक्टर (ACADA) ऑटोमेटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म सेना में शामिल होने जा रहा है। रासायनिक हमले की स्थिति में जानमाल की हानि कम करने के लिए इसकी तत्काल पहचान आवश्यक है।

अलार्म में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी घटक का इस्तेमाल

रासायनिक हमले की पहचान करने में ACADA एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब तक भारतीय सशस्त्र बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इन डिटेक्टर को दुनिया भर में उपलब्ध तीन निर्माताओं (अमेरिका-जर्मनी) से आयात करना पड़ता था। स्वदेश में बने डिटेक्टर और अलार्म में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी घटक इस्तेमाल हुए हैं। ग्वालियर DRDE के अधिकारियों ने बताया कि भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश है, जिसके पास इस तरह की प्रौद्योगिकी है। स्वदेशी रूप से विकसित किए गए अकाड़ा से जहां देश की सेनाओं और सुरक्षा बलों के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। वहीं इसका लंबे समय तक इस्तेमाल, बेहतर रख-रखाव, स्पेयर पार्ट्स/एक्सेसरीज की आपूर्ति आदि सुनिश्चित हो सकेगी। स्वदेशी रूप से विकसित किया गया यह उत्पाद आई-डीडीएम, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्म निर्भर भारत’ मिशन की दिशा में एक लंबी छलांग है।

2015 में कामयाबी मिली

बता दें ‘अकाडा’ को विकसित करने वाले साइंटिस्ट डॉ. सुशील बाथम मूल रूप से ग्वालियर के रहने वाले हैं। उन्होंने 2010 में ‘अकाडा’ को विकसित करने पर फोकस किया था। साल 2015 में उनको कामयाबी मिली। डिवाइस बनाने में 25 से 30 लाख रुपये का खर्च आया है। काम के प्रति साइंटिस्ट डॉ. सुशील बाथम की लगन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर 2022 में वह अपने प्रोजेक्ट के चलते बेंगलुरु में थे। उसी समय परिवार में गमी हो गई थी। ऐसे में वह अंत्येष्टि कार्यक्रम में नहीं आ सके थे। बाद में सिर्फ कुछ घंटों के लिए आए और वापस प्रोजेक्ट पर काम करने चले गए।

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