आदिम जाति विकास विभाग की अभिनव पहल : ‘अर्ली ग्रेड लर्निंग’ कार्यक्रम के जरिए पहली और दूसरी के विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ने-लिखने में की जा रही सहायता

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सुकमा जिले के 100 स्कूलों से शुरू किया गया था यह मुहिम, अब जिले के 346 स्कूलों और छात्रावास-आश्रमों में संचालित

रायपुर : आदिम जाति विकास विभाग अंतर्गत राज्य के सुकमा जिले में स्कूलों व पहली व दूसरी के विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ने-लिखने और धारा प्रवाह बनाने के उद्देश्य से एक अभिनव पहल करते हुए अर्ली ग्रेड लर्निंग कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। विभाग की इस पहल से बच्चों पढ़ने लिखने में काफी सहायता मिल रही है। सर्वप्रथम सुकमा जिले के सब स्कूलों में यह मूहिम शुरू की गई थी। अब जिले के 346 स्कूलों और आश्रम -छात्रावासों में संचालित हो रहा है।

बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में सितंबर 2019 में प्रारंभिक कक्षा शिक्षा अर्ली ग्रेड लर्निंग कार्यक्रम की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य कक्षा पहली और दूसरी के विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ने-लिखने और धाराप्रवाह बनाने में सहायता करने के साथ-साथ हिंदी में एक मजबूत आधार तैयार करना था।

उल्लेखनीय है कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जो बच्चों के लिए अवसर प्रदान करती है, क्योंकि इस क्षेत्र में कई विविध भाषाएँ बोलने वाली आबादी रहती है, जिनमें गोंडी, हल्बी, डोरिया, धुर्वा, भाटरा, महाराष्ट्र, लंबड़ी, तेलुगु आदि शामिल हैं। इस कार्यक्रम की एक अनूठी पद्धति है जिसमें कहानियों, चित्र कार्ड और वर्कबुक शामिल हैं, जो मौखिक भाषा कौशल, ध्वनि पहचान, वर्णमाला सीखना और शब्दों की पहचान पर केंद्रित हैं। इसका उद्देश्य धाराप्रवाह पढ़ना, समझ के साथ पढ़ना, स्वतंत्र रूप से पढ़ना और लिखना सिखाना है।

आदिम जाति विकास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत कहानी और कविता की पुस्तकों को ग्रो बाय मैट में 6 स्तरों में रखा गया है प्रत्येक स्तर को बच्चे के पढ़ने के स्तर को दर्शाने के लिए रंग कोडित किया गया है। स्कूल प्रबंधन समिति की बैठक के दौरान, अभिभावक भी ईजीएल श्ग्रो बाय मैटश् से पुस्तकें पढ़ते हैं, जिससे उन्हें पढ़ने के महत्व के प्रति जागरूकता मिलती है और विद्यार्थियों को प्रोत्साहन भी मिलता है। इस अभियान के सफल संचालन के लिए ‘‘रूम टू रीड’’ और यूनिसेफ ने तकनीकी सहायता प्रदान की है।

प्रारंभ में ईजीएल कार्यक्रम की शुरुआत 100 स्कूलों, छात्रावास-आश्रमों से हुई थी परन्तु इसकी सफलता को देखते हुए वर्तमान में यह जिले के 346 स्कूलों-छात्रावास आश्रमों में चल रहा है। इसमें विकासखंड छिन्दगढ़ के 33, सुकमा के 30 एवं कोंटा के 32 ट्राइबल आश्रम- छात्रावास शामिल हैं। यहां पर बच्चों को नियमित रूप से प्रशिक्षण, उनका मूल्यांकन एवं निगरानी का सुव्यवस्थित प्रबंधन किया जाता है। साथ ही अधिकारियों एवं विशेषज्ञों के द्वारा सतत निरीक्षण कार्यक्रम के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करते हैं।

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