भारतीय ज्योतिष के अनुसार ऐसे जातक जिनकी कुंडली में शनि की ढैया या साढ़ेसाती चल रही है। उन्हें लोहे की अंगूठी धारण करने की सलाह दी जाती है। वहीं, इस अंगूठी को राहु और केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए भी पहना जाता है। हर किसी व्यक्ति को लोहे की अंगूठी फायदा नहीं पहुंचाती है। वहीं, कुछ लोगों को इसे धारण करने के बाद नुकसान हो जाता है। किसी भी अंगूठी को धारण करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिषी से परामर्श लेना चाहिए। आइये जानते हैं कि लोहे की अंगूठी किन परिस्थितियों में धारण करना चाहिए।
लोहे की अंगूठी से जुड़ी बातें
यदि आपकी कुंडली में शनि की ढैया या साढ़ेसाती चल रही है, तो किसी ज्योतिष परामर्श लेकर इस अंगूठी को धारण कर सकते हैं। राहु-केतु और शनि के बुरे प्रभाव से बचाव के लिए ज्योतिष के जानकार लोहे की अंगूठी पहनने की सलाह देते हैं। लोहे की अंगूठी पुरुष को दाएं हाथ की बीच वाली उंगली में धारण करना चाहिए। क्योंकि शनि का क्षेत्र मध्यमा उंगली के नीचे होता है।
विशेष परिस्थिति में इसे बाएं हाथ की मध्यमा उंगली में भी धारण किया जा सकता है। लोहे की अंगूठी हमेशा शनिवार की शाम धारण करना शुभ होता है। रोहिणी, पुष्य, अनुराधा, और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में भी लोहे की अंगूठी धारण करना शुभ माना गया है।
कुंडली में शनि की स्थिति होने पर बुध, शुक्र और सूर्य एक साथ हों तो ऐसे में लोहे की अंगूठी पहनना नुकसानदायक हो सकता है। ऐसी स्थिति में सिर्फ चांदी का छल्ला ही धारण करना चाहिए।
यदि किसी जातक की कुंडली में राहु और बुध मजबूत स्थिति में हो तो लोहे की अंगूठी पहनना शुभ होता है।
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के 12वें भाव में बुध और राहु एक साथ या अलग-अलग होकर नीच का है तो ऐसे में अंगूठी की जगह लोहे का कड़ा हाथ में पहनना चाहिए। कुंडली का 12वां भाव राहु का होता है। ऐसे में राहु के शुभ परिणाम के लिए लोहे की अंगूठी को धारण किया जा सकता है।