प्रयागराज की तरह छत्तीसगढ़ का ‘राजिम कुंभ’ मेला है अनोखा, बेहद दिलचस्प है इस मेले का इतिहास

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रायपुर : तीर्थनगरी प्रयागराज जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे है. जहां साधु-संतों का जमावड़ा देखते ही बन रहा है, लेकिन अगर आप छत्तीसगढ़ के रहने वाले है और कुंभ का मेला देखना है तो आपको प्रयागराज जाना नहीं पड़ेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी राजिम में भी आज 12 फरवरी से कुंभ मेला लगने जा रहा है. जो 26 फरवरी यानि महाशिवरात्रि तक लगेगा. इसे लेकर प्रदेश में गजब का उत्साह है. आइए जानते हैं कि राजिम कुंभ का मेला कैसे होता है और इसका इतिहास क्या है?

छत्तीसगढ़ का ‘राजिम कुंभ कल्प’

प्रयागराज की तरह गरियाबंद जिले के राजिम में कुंभ का मेला लगता है. छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी महानदी में तीन नदियों का पहला त्रिवेणी संगम है राजिम में है. यहां पैरी, सोंडुर और महानदी राजिम में मिलती है. इसलिए इस जगह पर हर साल माघ पूर्णिमा पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है. वैसे भी छत्तीसगढ़ अपने खास तरह के मेलाओं के जाना जाता है और राजिम का मेला भी प्रसिद्ध है. प्रदेशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यह मेला देखने आते हैं. लेकिन यहां खास आकर्षण का केंद्र देशभर से आने वाले अजब-गजब साधु-संत होते हैं जो सुबह-सुबह कड़ाके की ठंड में डुबकी लगाते हैं.

राजिम त्रिवेणी संगम का क्या है पौराणिक इतिहास

राजिम में हर साल माघी पुन्नी मेला होता है. श्रद्धालु बड़ी संख्या दूर-दूर से नदी में पवित्र डुबकी लगाने आते हैं. पंडितों के अनुसार जनवरी-फरवरी के महीने में सभी नदियों का जल गंगा जल के समान हो जाता है. वहीं इसका इतिहास त्रेतायुग से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जब भगवान राम अपने वनवास काल में छत्तीसगढ़ आए तो माता जानकी ने संगम के बीचों-बीच बालू की रेत से शिवलिंग बनाया था, जिसे चित्रोत्पलेश्चर कहकर पूजा किया जा रहा था. समय के साथ नाम बदलते गया और अब इसे कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. इसलिए इस जगह मेला प्राचीन समय से लगते आ रहा है.

बेहद खास है छत्तीसगढ़ का ये संगम

त्रिवेणी संगम के एक तट पर भगवान विष्णु के अवतार भगवान राजीवलोचन विराजमान हैं और दूसरे तट पर सप्तऋषियों में से एक लोमश ऋषि का आश्रम विद्यमान हैं. त्रिवेणी संगम के बींचो-बीच खुद महादेव कुलेश्वरनाथ के रुप में स्थापित हैं. वैसे तो श्रद्धालूओं के यहां पहुंचने का सिलसिला सालभर लगा रहता है. मगर राजिम मेले के समय श्रद्धालूओं के पहुंचने की संख्या कई गुना बढ़ जाती है. वहीं मेले के पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं. पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर और चम्पेश्वरनाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं. इसके लिए श्रद्धालुओं को 101 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है.

आज से शुरू होगा राजिम कुंभ कल्प

आपको बता दें कि श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए राज्य शासन द्वारा 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था. फिर 2019 से 2023 तक राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया गया. इसके बाद अब फिर से “राजिम कुंभ कल्प” मेले का आयोजन किया जा रहा है.

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