रायपुर। कया छत्तीसगढ़ में सूचना के अधिकार कानून का क्रियान्वयन कमजोर करने का काम जनसूचना अधिकारी कर रहे हैं? क्या ये अधिकारी सूचना के अनुरोध को स्वीकार करने में आनाकानी कर रहे हैं, सूचनाएं समय पर नदेने के साथ ही मांगी गई सूचना को नष्ट कर रहे हैं या भ्रामक जानकारी दे रहे हैं… जी हां, यह सब यहां हो रहा है। यही कारण है कि यह कारगुजारी करने वालों पर राज्य सूचना आयोग ने शिकंजा कसते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की है। तकरीबन 639 अधिकारियों के विरूद्ध अनुशासनत्मक कार्रवाई के लिए कहा गया है। तगड़ा जुर्माना भी लगाया गया है।
ये है मामला
राज्य सूचना आयोग की एक रिपोर्ट में यह खुलासा करते हुए बताया गया है कि यह स्थिति वर्ष 2024 की है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सरकार और अधिकारियों के कामकाज में सुधार लाने और पारदर्शिता लाने का एक सार्थक प्रयास है। सूचना का अधिकार देश में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने और अधिकारियों में लालफीताशाही को नियंत्रित करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। इस अधिनियम के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की गई है, जिसके अंतर्गत कोई भी नागरिक लोक प्राधिकारी के कार्यकलापों के संबंध में सूचना प्राप्त कर सके। यदि जनसूचना अधिकारी द्वारा संबंधित को समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो ऐसे अधिकारियों को, राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य सूचना आयोग द्वारा दण्डित किया जा सकता है।
1 करोड़ 53 लाख से अधिक जुर्माना भी
आयोग द्वारा वर्ष 2024 में 1 करोड़ 53 लाख 13 हजार रुपए का अर्थदंड अपील एवं शिकायतों के प्रकरणों में जनसूचना अधिकारियों पर अधिरोपित किया गया है। आयोग द्वारा अधिनियम की धारा 20(2) के तहत अपील और शिकायत के 639 प्रकरणों में इतने ही अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की गई है। राज्य में 2024 में आरटीआई के तहत 1 लाख 15 हजार से अधिक आवेदन आए। इनमें से 6 हजार 459 शासकीय सेवकों, 19 हजार 516 पत्रकारों, 8 हजार 180 सामाजिक कार्यकर्ताओं, 10 हजार 35 महिलाओं तथा 71 हजार से अधिक अन्य लोगों ने आवेदन किए थे।