कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय महाधिवेशन में नेताओ के स्वागत में पहनाई गई माला को लेकर सियासत तेज़
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार व कांग्रेस नेता रुचिर गर्ग ने माले के पीछे की सच्चाई बयां की
रायपुर| रायपुर में तीन दिन तक चले कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय महाधिवेशन खत्म होने बाद भी अधिवेशन में स्वागत को लेकर प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है। सीएम भूपेश की ओर से अतिथियों को माला पहनाकर स्वागत करने का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। भाजपा के तथाकथित फेसबुक पेज और सोशस मीडिया ग्रुप्स में दावा किया जा रहा है कि ये माला सोने की है। वायरल वीडियो 24 फरवरी का बताया जा रहा है। बीजेपी की ओर से इस मामले में घेरने पर कांग्रेस ने पलटवार किया है।
सीएम भूपेश ने एयरपोर्ट पर चर्चा में कहा कि बीजेपी की आईटी सेल इस मामले में अफवाह फैला रही है। वो गणेश जी को देशभर में दूध पिला देती है। वो इसमें माहिर हैं। ये हमारे बैगा जनजाति की ओर से माला बनाई जाती है। ये विशेष प्रकार की घास से, फूल के डंठल से वो लोग माला बनाते हैं। कम से कम बीजेपी वालों को रमन सिंह से पूछ लेना चाहिए। ये उन्हीं के जिले से बनती है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार व कांग्रेस नेता रुचिर गर्ग ने भी माले के पीछे की सच्चाई बयां की। उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि हां ये हार सोने के हैं , उससे भी अनमोल हैं ! अफवाहबाज आई टी सेल से पता चला कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस महाधिवेशन में आए अतिथियों का स्वागत सोने के हार से किया।
एक बार को तो यकीन ही नहीं हुआ ! लेकिन वीडियो देखने पर तो साफ था कि हार सोने का था,और छोटा मोटा नहीं बड़ा हार था। हर एक अतिथि के लिए एक हार था। फिर भी मन हुआ कि थोड़ी और पुष्टि कर लें क्योंकि ज़माना तो अफवाहबाजों का है । मैंने भौतिक सत्यापन किया तो पाया कि हार तो वाकई सोने का था और वो भी कवर्धा की माटी के सुनारों द्वारा निर्मित! अतिथि भी उस हार को पा कर गदगद थे। महाधिवेशन का सबसे कीमती तोहफा जो था। सब सहेज कर ले गए। इस अनमोल तोहफे को कवर्धा के प्रकृति पुत्रों / पुत्रियों ने बनाया था।
करीब दो सौ की संख्या में ये बेशकीमती हार आए थे। अतिथि भी महत्वपूर्ण थे।वो ऐसे कीमती तोहफों की कद्र करना जानते थे और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी ऐसे अनमोल तोहफे देना सुखद लगता है! दरअसल, ये हार सोने के नहीं बल्कि सोने से भी कीमती होते हैं । इन्हें परंपरागत रूप से माटी के वो सुनार बनाते हैं जिन्हें हम बैगा के नाम से जानते हैं। बैगाओं के नेता इतवारी बैगा बताते हैं कि इसमें सूताखर नाम की घास और मुआ के फूल की डंडी का प्रयोग होता है और एक एक हार हाथ से बहुत मेहनत से बनाया जाता है।
‘इस हार को बीरन कहते हैं’
आम छत्तीसगढ़िया तो इस हार की कीमत ,बनाने में लगने वाली मेहनत ,इसे बनाने वाले माटी के सुनारों से परिचित था पर आई टी सेल को भी अब इसकी कीमत पता चल गई है। दरअसल अब इस राज्य में गोबर , गौ मूत्र भी कीमती हो गया है और ठेठरी खुरमी जैसे माटी के व्यंजन भी। बैगा आदिवासी घास फूस से बड़ी मेहनत से जिस माला को बनाते हैं उसे आई टी सेल ने सोने की माला बना दी ! अफवाह भी फैला दी।हार की चमक देखते ही सोशल मीडिया पर आईटी सेल सक्रिय हो गया। अच्छा ये हुआ कि इस बहाने बैगाओं की मेहनत की चमक सोशल मीडिया पर छा गई।
‘हां ये चमक सोने सी है’
हां इस चमक में सोने से कीमती पसीना है, हां ये चमक प्रकृति के,हमारी मिट्टी के उन सुनारों की कला की है जिन्हें हम बैगा कहते हैं। हां ये बेशकीमती है,सोना है,सोने से महंगा है! इसे सोशल मीडिया पर और फैलाना चाहिए! सोना कह कर ही फैलाना चाहिए! माटी के शिल्प को कम से कम इस बहाने सभ्रांत लोगों के मंच पर जगह मिल जाएगी !