वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान कृष्ण के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन का सनातन धर्म में खास महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, जो जातक वासुदेव द्वादशी का व्रत रखता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा जो दंपती संतान प्राप्ति की कामना रखने हैं। उन्हें वासुदेव द्वादशी का व्रत करना चाहिए। इस आषाढ़ मास द्वादशी 30 जून को 02.42 मिनट से 1 जुलाई को 01.17 मिनट तक रहेगी।
वासुदेव द्वादशी का महत्व
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वासुदेव द्वादशी कहा जाा है। यह दिन चतुर माह की शुरुआत का प्रतीक है, जो चार पवित्र मानसून माह का संकेत देता है। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन के महीनों में भक्त भगवा कृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस दिन उपवास रखने से भक्तों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
वासुदेव द्वादशी मनाने का कारण
यह व्रत नारद मुनी ने वासुदेव और देवकी को बताया था। भगवान वासुदेव और माता देवकी ने आषाढ़ मास के शुक्ल की द्वादशी तिथि को व्रत रखा था। इस व्रत के कारण उन्हें श्री कृष्ण के रूप में संतान की प्राप्ति हुई थी। इस व्रत की महिमा से जातक को सभी कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।
वासुदेव द्वादशी पूजा विधि
सुबह सबसे पहने नहाने के बाद साफ कपड़े पहनने। पूरे दिन का व्रत रखें। भगवान को फल-फूल चढ़ाने चाहिए। भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाए। इस दिन विष्णु सहसत्नाम का जाप करने से हर समस्या का समाधान होगा।